Thursday, November 21, 2024

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अविज्ञाय नरो धर्मं दुःखमायाति याति च । मनुष्य जन्म साफल्यं केवलं धर्मसाधनम्     ॥     अविज्ञाय नरो धर्मं दुःखमायाति याति च । मनुष्य जन्म साफल्यं केवलं धर्मसाधनम्     ॥     अविज्ञाय नरो धर्मं दुःखमायाति याति च । मनुष्य जन्म साफल्यं केवलं धर्मसाधनम् ॥

डा. रामधारी सिंह दिनकर ने धार्मिक और सामाजिक पुर्नजागरण में दो महत्वपूर्ण लक्ष्ण बतायें –
1. अतीत के प्रति गौरव की भावना
2. निवृत्तिवाद (रूढ़िवादिता को छोड़कर नवाचार को अपनाने की प्रवृतित)

इस समय प्रत्येक सनातनी ने यह अनुभव किया है कि उनकी अपनी अतीत की कुंजी निश्चित रूप से अधिक महत्वपूर्ण व गौरवपूर्ण है। प्रबुद्व वर्ग भी वेदांत की महिमा को और साथ ही आधुनिक विज्ञान की आवश्यकता को एकात्म कर नई परिस्थिति के मध्य सामन्जस्य को स्वीकार कर रहा है। वस्तुतः भारतीय समाज में धर्म को लेकर जिस जनचेतना का प्रादुर्भाव हो रहा है उसे एक दिशा देना अत्यावश्यक है। इसी को ध्यान में रखते हुए बजरंग सेवा दल की हिन्दू पुर्नजागरण समिति इस प्रक्रिया में प्रथमतः लोगों को अपनी संस्कृति और परम्पराओं को जोड़ने का कार्य कर रही है। इस प्रकार अपने प्राचीन इतिहास परम्पराओं और संस्कृति से जुड़े रहते हुए नवीन ज्ञान, सभ्यता के प्रकाश में नई दिशा देते हुए धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में हिन्दूओं को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है। साथ ही समस्त हिन्दूओं को उस असीम ज्ञान सागर का दर्शन भी करा रही है जिसमें अंततः सभी सम्प्रदायों की नदियां आकर मिलती हैं।

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