Wednesday, October 16, 2024

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अविज्ञाय नरो धर्मं दुःखमायाति याति च । मनुष्य जन्म साफल्यं केवलं धर्मसाधनम्     ॥     अविज्ञाय नरो धर्मं दुःखमायाति याति च । मनुष्य जन्म साफल्यं केवलं धर्मसाधनम्     ॥     अविज्ञाय नरो धर्मं दुःखमायाति याति च । मनुष्य जन्म साफल्यं केवलं धर्मसाधनम् ॥

अपनी सभ्यता, संस्कृति और ऐतिहासिक प्रगति की जानकारी जीवन्त रूप में भावी पीढ़ीयों तक इसके वास्तविक स्वरूप में पहुॅचाने हेतु इसका संरक्षण एवं संवर्धन अत्यावश्यक है। अतएव बजरंग सेवा दल, सांस्कृतिक समायोजन समिति द्वारा देश के विभिन्न भागों की लोककथाओं एवं जातक कथाओं में छिपे विषय वस्तु का वास्तविक अर्थ बताने का कार्य गोष्ठी, संवाद, सम्मेलन, उन्मुखीकरण कार्यशाला आदि  के माध्यम से धरातल स्तर पर कर रहा है। गंगा, यमुना, वृक्ष, सूर्य आदि प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं की पूजा और उसके पीछे का विज्ञान साथ ही संगीत के राग जैसे – मेघराग, बारहमासा आदि लोकगीतों का संरक्षण भी परस्पर प्रतिस्पर्धाओं  के माध्यम से कर रहा है। 

हमारी सांस्कृतिक विरासत से ही देश और देश के लोगों की पहचान प्रस्तुत होती है जिससे हमारा गौरव बढ़ता है परन्तु वर्तमान में पर्यावरण एवं विरासतों के प्रति लोगों में उदासीनता का भाव आ गया है, जिसका प्रमुख कारण जागरूकता का अभाव है। अगर आप भी हमारी गौरवशाली परम्पराओं का संरक्षण और संवर्धन करने हेतु तत्पर हैं तो आपका सहयोग और समर्थन हमें इस कार्य में और उत्साहित करेगा।

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